वशिष्ठ के सलाह / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’
धीर चित्त महर्षि वशिष्ठ, जग ध्वंस होत जान ।
इक्ष्वांकु वंशीकुल में, साक्षात् धर्म समान ।।
धैयैवान उत्तम व्रती, आरु छोॅ श्री सम्पन्न ।
धर्म त्याग तेॅ नै करोॅ, बनोॅ नै तोंय विपन्न ।।
धरमों केॅ पालन करोॅ, पुन केॅ राखोॅ हाथ ।
हमरोॅ आज्ञा मानि लेॅ, राम मुनि के साथ ।।
अस्त्रा विद्या हीन राम, पर दैत्य टिक न पाय ।
आग सें सुरक्षित अमृत, केकरोॅ हाथ न जाय ।।
कौशिक सें सुरक्षित राम, दैत्य कुछ कर न पाय ।
राम व विश्वामित्रजी, धरम मूरती भाय ।।
विद्या विभूषित मुनिजी, तपसी छै बेजोड़ ।
तीन लोक के अस्त्रा में, नै करेॅ सकेॅ होड़ ।
हमरा अलावे हिनकोॅ, परिचय नै छै ज्ञात ।
देवता रिषि किन्नरादि नै जानै छै बात ।।
सबटा अस्त्रा धर्मात्मा पुत्र, प्रजापति कृशाश्व के छेकै
विश्वामित्र के शासन काल में, प्रजापति ने हुनका देलकै
प्रजापति दक्षजी ने जया-सुप्रभा पुत्री पैदा करलकै
दोन्हु ने पचास-पचास अस्त्रों के भी उत्पन्न करलकै
सबटा अस्त्रा शक्तिशाली, प्रकाशमान आह विजय दिलावै वाला
सबके सब असुर सेना केॅ वध करावै वाला
सब अस्त्रों के ज्ञान छै कौशिक मुनि केॅ
अनुपलब्ध शस्त्रा केॅ भी उत्पन्न करै के शक्ति मुनि केॅ
भूत-भविष्य के बात भी हुनका सेॅ छिपलोॅ नै छै
हुन्हीं स्वयं राक्षस के संहार करै में समर्थ छै
मतर आपनें के पुत्र के कल्याण चाहै छै
यही लेली हुन्हीं राम के याचना करै छै
हायकू-
विश्वामित्रजी/अतिप्रभावशाली/महातेजस्वी
विश्वामित्रजी/छेकै धर्मज्ञ रिषि/महायशस्वी
कुशिक पुत्र/अस्त्रा-शस्त्रा के ज्ञाता/शक्ति-सम्पन्न
दोहा-
कौशिक मुनि साथें राम, भेजोॅ बिन संदेह ।
जगत में प्रसिहद्ध होत्हौं, मिट जैत्थौं संदेह ।।