नहीं  दामिनी  कभी  मरेगी  जितना  घिरे अमावस
अधियाले  में  चमक  पड़ी   हैं  ताराओं  की  आँखें
बाजों  की   पाँखों-से  लगती  गोरैयों   की पाँखें
सत् का सूर्य बढ़ा आता है। सूली पर हो तामस !
दिल्ली का ही क्या दिल धक धक; पूरा देश दहलता
सुषमा के स्वर  में   हैं  आँसू, जया  विलखती-रोती
जब  तिहाड़  तक  जाग उठा है, कैसे संसद  सोती
मैंने देखा, ठण्डा लोहा गलता और पिघलता।
मत वसन्त की करो प्रतीक्षा, जब हो शिशिर-विहार
गली-गली में  चैक-चैक पर हो लपटें, हो आगिन
सर्द  रात  यह  बनी  हुई  है  सबके जी पर बाघिन
एक बार फिर  भारत  जाने  नारी शक्ति-हुंकार ।
श्मशानों में प्रेतों का जी, तन-मन हुलस रहा है 
रोको  उसको; किसका  यह मन ऐसे झुलस रहा है!