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वसुधैव कुटुम्बकम पण कोई नी आपांरो / लक्ष्मीनारायण रंगा
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वसुधैव कुटुम्बकम पण कोई नीं आपांरो
धरती रा हां जाया पण धर नीं आपांरो
अबै सुतन्तर हां आपां ओ स्वराज आपांरो
पण हर तन्त्र पर सूं उठरियो पतियारो
अहिंसा परमो धर्मः ओ सिद्धान्त आपांरो
आग, डकैती, हत्या, बलात्कार रो निजारो
हाथां रंगीन टी.वी. आंख्यां उपग्रह प्यारो
भूख री अगन में जळै आदमी बिचारौ
अे न्याय रा तराजू, आयोगां री रपटां
भ्रस्ट चक्रव्यू रो नीं टूटरियो किनारो
बहलासी कद तांई, ओ चान्द रो खिलौणों
बिना दूध मरै, जद आंख रो ई तारौ
अे सुस्त सुस्त भवरा अे मरी मरी तितळयां
कद दिखा पासी एक बसन्त रो निजारो
योजनावां पंचवर्षी, ओ बसी सूत्री नारो
उम्मीद में ही मरग्यो ओ जमानो बिचारो