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वह औरत / ज्योति चावला

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वह औरत अपनी लाल साड़ी के आँचल में
बटोर कर ले जा रही है कई फूल सफ़ेद
ऐसे जैसे बटोर कर ले जा रही हो
आसमान से अनगिनत तारे

इन तारों से रौशन करेगी सबसे पहले
वह अपने घर का मन्दिर
हाथों की ओट दे रख देगी एक तारा
मन्दिर के छोटे से दीप में

फिर इन तारों से जलाएगी
रात भर से उदास पड़ा अपना चूल्हा
उसके आँचल में बटोरे यही तारे
उजास भर देंगे फिर पूरे आँगन में

इस तरह, वह औरत
आज फिर
एक नई सुबह को जन्म देगी ।