वह घर से निकली है
वह खिड़की से सड़क देखता है
उसके साथ चुपचाप चल रहा है अनिश्चय
उसके साथ बैठी है अपने से निरन्तर उत्पन्न होती हुई प्रतीक्षा
पल भर को ही सही
वे इन्हें आपस में बदल सकते
उन क़िताबों की तरह
जिन्हें कुछ कहे बिना
वे बदलने वाले हैं आज शाम
वह लगातार घर से निकल रही है
वह खिड़की से देख रहा है सड़क की निस्पन्द अन्तहीनता