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वात्सल्य / विनय सिद्धार्थ
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मन में उमंग लिए पुत्र को वह संग लिए खुशियों के रंग लिए झूमती चली गई
मेले में त्यौहार में ममता कि धार में पुत्र के प्यार में वह डूबती चली गई
थैला वह साथ लिए पुत्र को भी हाथ लिए रुक-रुक बैठ-बैठ घूमती चली गई
सूर्य के प्रचंड को वह कर के खंड-खंड उसे ममता कि छांव में वह चूमती चली गई