भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वासना / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
आँच में तपकर
दूध उफना
आग ने पी लिया
एक सोंधी महक
माहौल में समा गई ।
वासना का ज्वार
संयम की सीमाएँ तोड़
उफना
दमित आकांक्षा ने तृप्ति पाई
एक दर्द मीठा-सा
मन में जगा
भला लगा ।
दूध चुक गया
वासना बुझ न पाई...।