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वासन्ती व्यास / रमेश रंजक

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ढहने दो छन्द-बन्ध
बहने दो गीत-गन्ध
वर्तुली लहरियों में वासन्ती व्यास ।

खँडहरी हवाओं में
जीना, क्या जीना
आने दो आने दो
फ़रवरी महीना
धूप में नहाने दो पंकिल इतिहास ।

खेतों पर चढ़ने दो
सोने का पानी
हर बग़िया मौसम की
लगे राजधानी
होठों से जुड़ने दो होठों की प्यास ।