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वाह, मेरे किशन कन्हाई! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
मेट्रो में घूमे न शापिंग मॉल देखा,
मूवी-मूवी देखी न सिनेमाहॉल देखा,
माखन के चक्कर में खाई पिटाई।
वाह मेरे, वाह मेरे किशन कन्हाई!
बाँसुरी की धुन में ही मस्त रहे हर दिन,
काम कैसे चल पाया सेलफोन के बिन ?
थाम के लकुटिया, बस, गैया चराई।
वाह मेरे, वाह मेरे, किशन कन्हाई!
काश कहीं द्वापर में इंटरनेट होता,
ईमेल से सबका कांटेक्ट होता,
गली-गली ढूँढ़ती न फिर जसुदा माई।
वाह मेरे, वाह मेरे, किशन कन्हाई!