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विजयनी / काजी नज़रुल इस्लाम / सुलोचना वर्मा

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ओ मेरी रानी ! हार मानता हूँ आज अन्ततः तुमसे
मेरा विजय-केतन लूट गया आकर तुम्हारे चरणों के नीचे।
मेरी समरजयी अमर तलवार
हर रोज़ थक रही है और हो रही है भारी,
अब ये भार तुम्हें सौंप कर हारूँ
इस हार माने हुए हार को तुम्हारे केश में सजाऊँ।।

ओ जीवन-देवी।
मुझे देख जब तुमने बहाया आँखों का जल,
आज विश्वजयी के विपुल देवालय में आन्दोलित है वह जल !
आज विद्रोही के इस रक्त-रथ के ऊपर,
विजयनी ! उड़ता है तुम्हारा नीलाम्बरी आँचल,
जितने तीर है मेरे, आज से सब तुम्हारे, तुम्हारी माला उनका तरकश,
मैं आज हुआ विजयी तुम्हारे नयन जल में बहकर।

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
                বিজয়িনী

 হে মোর রাণি! তোমার কাছে হার মানি আজ শেষে।
আমার বিজয়-কেতন লুটায় তোমার চরণ-তলে এসে।
আমার সমর-জয়ী অমর তরবারী
দিনে দিনে ক্লানি- আনে, হ'য়ে ওঠে ভারী,
এখন এ ভার আমার তোমায় দিয়ে হারি,
এই হার-মানা-হার পরাই তোমার কেশে।।

ওগো জীবন-দেবী।
আমায় দেখে কখন তুমি ফেললে চোখের জল,
আজ বিশ্বজয়ীর বিপুল দেউল তাইতে টলমল!
আজ বিদ্রোহীর এই রক্ত-রথের চূড়ে,
বিজয়িনী! নীলাম্বরীর আঁচল তোমার উড়ে,
 যত তৃণ আমার আজ তোমার মালায় পূরে',
আমি বিজয়ী আজ নয়ন-জলে ভেসে।

– কাজী নজরুল ইসলাম