विद्या बिन अविद्या रूप, गोरा तन शोभा क्या,
विद्या से विहीन लोग दुःख ही दुःख सहते हैं |
दिन में ना सूझ परे जन-जन से जूझ परे,
रात के ही राजा ज्यूँ राजा बन रहते हैं |
अरमासे गरमासे और वे निसरमा से,
कछु-कछु शरमा से मारे मन रहते हैं |
कहता शिवदीन राम सोचो और समझो तो,
लोगन को लोग कई मूरख क्यूँ कहते हैं |
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विद्या से अर्थ मिले मान सनमान मिले,
विद्या से धर्म कर्म काम मोक्ष धाम भी |
विद्या है अपर बल अक्ल अनुमान करो,
ज्ञान करो ध्यान करो मिलता आराम भी |
विद्या से मनोहर तन मन भी प्रसन्न रहे,
मस्ती रहे आठों याम सुबह और शाम भी |
कहता शिवदीन राम सुधर जाय सकल काम,
विद्या से सालों साल उज्वल शुभ नाम भी |
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विद्वानन की गतियाँ मतियाँ,
बतियां सुण चातुर लोग ही जाने |
धन्य गुणी गुण को लखि है,
अरु मूरख तो अपनी जिद ठाने |
गुमान घमंड भरे तन में,
मन में अभिमान से होय दिवाने |
शिवदीन वो जायें जहाँ भी कहीं,
पर मूरख मूढ़ रहें नहीं छाने |
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विकसित होता है विद्या से, हृदय कमल का फूल,
विद्या धन बिन धन सकल समझो माटी धूल |
समझो माटी धूल, धूल से फूल बनाना,
धूल फूल बनि जाय वाही तो विद्या पाना |
विद्वानन की गति मति, समझत हैं विद्वान,
शिवदीन सुशोभित विद्वता करके देखो ज्ञान |
राम गुण गायारे ||