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विफल / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
लहरों-सी उफ़नती
उर-उमंगें सो गयीं,
चहचहाती डाल सन्ध्या की
अचानक
मूक-बहरी हो गयी !
प्रतीक्षा-रत
सजग आँखें
विवश चुप-चुप
- रो गयीं !
- रो गयीं !
निशि
हिम-कणों से सृष्टि
- सारी धो गयी !
- सारी धो गयी !