विरह / निर्मल कुमार शर्मा
ताराँ छाई रात चांदणी चंदा ने तरसे, चांदणी चंदा ने तरसे
कह न सक्या जो होठ पीड़ बा नैणा सूँ बरसे
चांदणी चंदा ने तरसे !!
फागण आयो रंग-रंगीलो, बाजे चँग धमाल
पिव संग सखियाँ खेले होली, हिलमिल गावे फाग
मनडे होली बले और तनड़े में लागे आग
रंग बसन्ती फीको लागे, मनड़ो करे पुकार
बाट उडीकत नैणा आगे, फीकी पड़ी गुलाल
गौरड़ी बालम ने तरसे
चांदणी चंदा ने तरसे !!
सावण आयो मास सुरंगों, रिमझिम बरै फुहार
फूली बेल कसुम्बळ, सूखी सुपनाँ री फुलवार
फुलडे जद देखूँ भंवरो, सुण नीन्दड़ली रा चोर
ठण्डो बायारियो भी बाले, रोवे मन रो मोर
दो बादलिया मिल जद पळके, हिवड़े हाले कटार
गौरड़ी बीजळ सूँ डरपे
चांदणी चंदा ने तरसे !!
मिरगानैणी सुगन मनावे, जतन करे दिन-रात
सूवटिया प्यारा कह आ, पिव ने मनडे री बात
बाग़ फलै ना बिन माली, बिन केवट मिले न तीर
चंचरीक बिन सूनो मधुबन, थां बिन जमुना तीर
बादळ ना बरसे तो कईयाँ मिटे धरा री प्यास
गौरड़ी चातक ज्यूँ कळपे
चांदणी चंदा ने तरसे !!
ताराँ छाई रात चांदणी चंदा ने तरसे, चांदणी चंदा ने तरसे
कह न सक्या जो होठ पीड़ बा नैणा सूँ बरसे
चांदणी चंदा ने तरसे !!