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दुःखी मन की तलाश / प्रदीप मिश्र

1,347 bytes added, 12:03, 13 दिसम्बर 2010
नया पृष्ठ: <poem>'''दुःखी मन की तलाश''' दु:खी मन पर होता है इतना बोझ सम्भाले न सम्भल…
<poem>'''दुःखी मन की तलाश'''


दु:खी मन पर होता है इतना बोझ
सम्भाले न सम्भले इस धरती से
हवा ले उड़ना चाहे तो
फिस्स हो जाए और
आकाश उठाने का कोशिश में
धप्प् से गिर जाए

दु:खी मन में होती है इतनी पीड़ा
माँ का दिल भी पछाड़ खा जाए
पिता रो पड़ें फफक्कर
बहन छोड़ दे
डोली चढ़ने के सपने

दु:खी मन में होती है इतनी निराशा
जैसे महाप्रलय के बाद
पृथ्वी पर बचे एकमात्र जीव की निराशा

दुःखी मन जंगल में
भटकता हुआ मुसाफिर होता है
जिसे घर नहीं
नदी या सड़क की तलाश होती है

दुःखी मन
नदी में नहा कर
जब उतरता है सड़क पर
मंजिलें सरकने लगतीं हैं उसकी तरफ ।
</poem>
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