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11:45, 20 दिसम्बर 2010 <poem>ठहरा है झील का पानी तो उठा लो पत्थर
कोई हलचल तो मचे यारो उछालो पत्थर
भूखे जो रह नहीं सकते हो तो इतना ही करो
रोटियाँ मिलती नहीं पीस के खा लो पत्थर
और कुछ भी नहीं इजहारे बगावत ही सही
तौल के हाथ हवाओं में उछालो पत्थर
तुम बड़े प्यार के हक़दार बने फिरते थे
प्यार के बदले में लो अब ये सँभालो पत्थर
ये न मुरझाएंगे, टूटेंगे, न बिखरेंगे कभी
फूल के बदले चलो घर में सजा लो पत्थर
वे तुम्हें लूटने आयें हैं उठो कुछ तो करो
तीर, तलवार नहीं हैं तो सँभालो पत्थर
अब वहां गुल नहीं, कलियाँ नहीं, खुशबू भी नहीं
कुछ मंगाना है वहां से तो मंगा लो पत्थर
इस शहर में ही अनिल रहना अगर है तुमको
शीशाए दिल को जरा पहले बना लो पत्थर</poem>