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रविश-ए-गुल <ref>फूल की भांति</ref> है कहां यार हंसाने वालेहमको शबनम <ref>ओस</ref> की तरह सब है रूलाने वाले
सोजिशे-दिल <ref>दिल की जलन</ref> का नहीं अश्क बुझाने वाले
बल्कि हैं और भी यह आग लगाने वाले
मुंह पे सब जर्दी-ए-रूखसार <ref>गालों का पीलापन</ref> कहे देती है
क्या करें राज मुहब्बत के छिपाने वाले
वह तो इक गुल हैं नया रोज खिलाने वाले
दिल को करते है बुतां<ref>रूपसी</ref>, थोड़े से मतलब पे खराब
ईंट के वास्ते, मस्जिद हैं ये ढाने वाले
नाले हर शब को जगाते हैं ये हमसायों को
बख्त-ख्वाबीदा <ref>सोया हुआ भाग्य</ref> को हों काश, जगाने वाले
खत मेरा पढ़ के जो करता है वो पुर्जे-पुर्जे
</Poem>
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