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|संग्रह=
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कलरव घर में नहीं रहा सन्नाटा पसरा है
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।है ।
पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर
पत्थर बहता है
अपराधी ने देश बचाया
हँसता हूँ जब तुम कबीर की
साखी देते हो
पैर काटकर लोगों को
ठगा गया है आम आदमी
आया धोखे में
घर में भूत जमाये जमाए डेरा
देव झरोखे में
गूंगों की पंचायत करने वाला बहरा है ।
जैसा तुम बोओगे भाई !
वैसा काटोगे
भैंसे की मन्नत माने हो
भैंसा काटोगे
तेरी बारी है चोरी की, तेरा पहरा है।है ।</poem>