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{{KKRachna
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जाए जाकर, बेवफाई, कोई उनसे सीख आए
जिसको कहते हैं बुराई, कोई उनसे सीख आए
हैं ज़माने के बड़े मशहूर वो नग़मासरा
मुस्तनद नग़मा सराई, कोई उनसे सीख आए
किस तरह उल्फ़त लुटाते हैं अता करते हैं प्यार
जाके तर्ज़े दिलरुबाई, कोई उनसे सीख आए
वस्ल की शब के सभी आदाब से वाक़िफ़ हैं वो
बाद में पकड़े कलाई, कोई उनसे सीख आए
एक घर में एक होकर साथ रहने की अदा
वो हैं दोनों भाई-भाई, कोई उनसे सीख आए
शैख़ हैं वो, वो बिरहमन और हैं दोनो पारसा
चीज़ क्या है पारसाई, कोई उनसे सीख आए
दो महाजन हैं मोहल्ले में हमारे, किस तरह
जोड़ते हैं पाई पाई, कोई उनसे सीख आए
वो हसीं हैं और सितम शेवा है उनका ऐ 'रक़ीब'
चीज़ क्या है कजअदाई, कोई उनसे सीख आए
</poem>
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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जाए जाकर, बेवफाई, कोई उनसे सीख आए
जिसको कहते हैं बुराई, कोई उनसे सीख आए
हैं ज़माने के बड़े मशहूर वो नग़मासरा
मुस्तनद नग़मा सराई, कोई उनसे सीख आए
किस तरह उल्फ़त लुटाते हैं अता करते हैं प्यार
जाके तर्ज़े दिलरुबाई, कोई उनसे सीख आए
वस्ल की शब के सभी आदाब से वाक़िफ़ हैं वो
बाद में पकड़े कलाई, कोई उनसे सीख आए
एक घर में एक होकर साथ रहने की अदा
वो हैं दोनों भाई-भाई, कोई उनसे सीख आए
शैख़ हैं वो, वो बिरहमन और हैं दोनो पारसा
चीज़ क्या है पारसाई, कोई उनसे सीख आए
दो महाजन हैं मोहल्ले में हमारे, किस तरह
जोड़ते हैं पाई पाई, कोई उनसे सीख आए
वो हसीं हैं और सितम शेवा है उनका ऐ 'रक़ीब'
चीज़ क्या है कजअदाई, कोई उनसे सीख आए
</poem>