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दूसरा पहाड़ / जे० स्वामीनाथन
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15:48, 6 जनवरी 2011
-देखो न
वैसे ही आकाश को थामे खड़े हैं दयार
वैसे ही चमक
र्ही
रही
है घराट की छत
वैसे ही बिछी हैं मक्की की पीली चादरें
और डिंगली में पूँछ हिलाते डंगर
अनिल जनविजय
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