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रोटियाँ / नज़ीर अकबराबादी

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सौ-सौ तरह के नाच दिखाती हैं रोटियाँ ।।12।।
रोटी के नाच तो हैं सभी ख़ल्क में बड़े ।
कुछ भाँड भगतिए ये नहीं फिरते नाचते ।।
ये रण्डियाँ जो नाचें हैं घूँघट को मुँह पे ले ।
घूँघट न जानो दोस्तो ! तुम जिनहार इसे ।।
उस पर्दे में ये अपनी कमाती हैं रोटियाँ ।।13।।
दुनिया वह जो नाचने में अब बदी न कहीं और निकोई हैबताती हैं भाव-ताव ।न दुश्मनी व दोस्ती न तुन्द खोई हैकोई किसी का और किसी का न कोई हैचितवन इशारतों से कहें हैं कि ’रोटी लाव’ ।।रोटी के सब कोई है उसी का कि जिस हाथ डोई हैसिंगार हैं रोटी के राव-चाव ।रंडी की ताब क्या करे जो करे इस कदर बनाव ।। यह आन, यह झमक तो दिखाती हैं रोटियाँ ।।14।।
नौकर नफ़र ग़ुलाम बनाती अशराफ़ों ने जो अपनी ये जातें छुपाई हैं ।सच पूछिए, तो अपनी ये शानें बढ़ाई हैं ।।कहिए उन्हीं की रोटियाँ कि किसने खाई हैं ।अशराफ़ सब में कहिए, तो अब नानबाई हैं ।। जिनकी दुकान से हर कहीं जाती हैं रोटियाँ।।15।।
रोटी का भटियारियाँ कहावें न अब अज़ल से हमारा तो है ख़मीरक्योंकि रानियाँ ।रूखी भी रोटी हक़ मेहतर खसम हैं उनके वे हैं मेहतरानियाँ ।।ज़ातों में हमारे है शहद-ओ-शीरजितने और हैं क़िस्से कहानियाँ ।या पतली होवे मोटी ख़मीरी हो या कतीरगेहूं जुआर बाजरे सब में उन्हीं की जैसी हो ‘नज़ीर‘ हम ज़ात को सब तरह ऊँची हैं बानियाँ ।। किस वास्ते की ख़ुश आती सब ये पकाती हैं रोटियाँ.।।16।।
दुनिया में अब बदी न कहीं और निकोई है ।
ना दुश्मनी ना दोस्ती ना तुन्दखोई है ।।
कोई किसी का, और किसी का न कोई है ।
सब कोई है उसी का कि जिस हाथ डोई है ।।
नौकर नफ़र ग़ुलाम बनाती हैं रोटियाँ ।।17।।
रोटी का अब अज़ल से हमारा तो है ख़मीर ।
रूखी भी रोटी हक़ में हमारे है शहद-ओ-शीर ।।
या पतली होवे मोटी ख़मीरी हो या फ़तीर ।
गेहूँ, ज्वार, बाजरे की जैसी भी हो ‘नज़ीर‘ ।।
हमको तो सब तरह की ख़ुश आती हैं रोटियाँ ।।18।।
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