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कोई मगरूर है भरपूर ताकत से
कोई मजबूर है अपनी शराफत से

घटाओं ने परों को कर दिया गिला
बहुत डर कर परिंदों के बग़ावत से

मिलेगा न्याय दादा के मुकद्दमे का
ये है उम्मीद पोते को अदालत से

मुवक्किल हो गए बेघर लड़ाई में
वकीलों ने बनाए घर वकालत में

किसी ने प्यार से क्या क्या नहीं पाया
किसी ने क्या क्या नहीं खोया अदावत से
</poem>
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