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Kavita Kosh से
- दीपा जोशी
by vikrant saroha
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रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था ।
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था ।
बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया ।
भाला गिर गया गिरा निसंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का डेख ऐसा रंग
रचयिता ः श्यामनारायण् पाण्डेय,
अनुनाद ने भेजा
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