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Kavita Kosh से
जिसमें थोड़ा-सा साहस झलकता है
और ग़्रीबी ग़रीबी ढँकी हुई दिखाई देती है
उजाले में खिंची इस तस्वीर के पीछे
जिसे मैं बार-बार खिंचवाता हूँ
निरर्थक-सी उम्मीद में
(१९1990-1993)
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