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इतने गहरे हैं जब जुबानी में / श्याम कश्यप बेचैन
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10:42, 4 फ़रवरी 2011
सच नहीं बोलते तो क्या होता
फँस
गये
गए
हम ग़लतबयानी में
तंगदस्ती ने इस क़दर मारा
हो ना
पाये
पाए
जवाँ जवानी में
आए पानी को बाँधने लेकिन
आप भी बह गए रवानी में
</poem>
अनिल जनविजय
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