कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ ।
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ ।
जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का,
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ ।
कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई,
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ ।
मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया,
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ ।
वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी,
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ ।
वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे,
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा ।
कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।
मैं खूदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बु, ज़मीनो-आस्माँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।
हमारा दिल सबरे का सुनहरा जाम हो जाए ।
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए ।
मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ,
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए ।
अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर,
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए ।
समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको,
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए ।
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा,
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए ।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए ।
बशीर बद्र
जयप्रकाश मानस
0000000000