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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-१
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<poem>

ये नफ़्रतों की सदाएँ, वतन का क्या होगा
हवा में आग बही तो चमन का क्या होगा

सफर नसीब मुसाफिर से ये सवाल न कर
कहाँ सुकूं मिलेगा थकन का क्या होगा

किसी के पास इबादत का आज वक्त नहीं
हमारे बाद यहाँ फिक्रो फेन का क्या होगा

मिटा तो देंगे ये उम्मीद की लकीर मगर
मेरी जमीन तुम्हारे गगन का क्या होगा

यही ख्याल तो दामन को थाम लेता है
हम उठा गए तो तेरी अंजुमन का क्या होगा

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