भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने से बाहर / लीलाधर जगूड़ी

22 bytes added, 10:59, 5 फ़रवरी 2011
{{KKRachna
|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी
}}<poem>जब घाटी में था से देखा तो शिखर सुन्दर , सुंदर दिखता थाशिखर अब शिखर पर पहुंचाहूँ तो बहुत ज़्यादा सुन्दर दिख रही दिखती है घाटी. अपने से बाहर जहां जहाँ से भी देखोदूसरा ही सुन्दर दिखता है.</POEMpoem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits