भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

/ पूरन मुद्गल

1,841 bytes removed, 10:07, 13 फ़रवरी 2011
पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है
तुम मोहंजोदड़ो हो गए
तो क्या हुआ
वक्त ने धूल के दुशाले
डाल दिए तुम पर
इससे क्या !
वर्षों तक
मैंने तुम्हारा पीछा किया
तुम उठे तो-
किंतु
संवाद की कोई नदी
हमें छूकर नहीं गुज़री-
तुम्हारे साथ दफन भाषा का
कोई व्याकरण नहीं रचा गया
तभी तो तुम दिखाते हो-
एक चिड़िया का चित्र
किसी मछली की आकृति
या टूटे बर्तन का किनारा-
 
चिड़िया वैसी ही
जो आज भी मेरे कमरे में
घोंसला बनाने के लिए तिनका उठाए है
मछली वही
जो पानी के बिना तड़पती है
टूटे प्याले पर
प्यास के निशान हू-ब-हू वैसे
जो आज भी मेरे होंठों पर अंकित हैं
 
इसलिए तुम मरे नहीं
तुम मुझ में जीवित हो
जब तक कि मैं मोहंजोदड़ो नहीं बन जाता
 
इससे पहले कि मैं जीवाश्म बनूं
मैं देखना चाहता हूं-
चिड़िया का एक सुरक्षित नीड़
साफ पानी में तैरती मछली
और
एक भरे प्याले से छलकती तृप्ति का अहसास