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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> खूब कसरत कर रहा हूँ धूप…
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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
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<poem>
खूब कसरत कर रहा हूँ
धूप में भी मर रहा हूँ
भूख जितनी भी विकल हो
पेट भर का पी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ......
सूत भर कर सूत धागे
उँगलियों में दर्द जागे
दो उनींदी आंख आगे
ज़िन्दगी यूँ सी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ...
खूब सपने उग रहे हैं
और बारिश बो रही है
आज जैसा भी रहे पर
कल की चिंता हो रही है
हूँ वही.. जो भी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ ...
</poem>
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
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<poem>
खूब कसरत कर रहा हूँ
धूप में भी मर रहा हूँ
भूख जितनी भी विकल हो
पेट भर का पी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ......
सूत भर कर सूत धागे
उँगलियों में दर्द जागे
दो उनींदी आंख आगे
ज़िन्दगी यूँ सी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ...
खूब सपने उग रहे हैं
और बारिश बो रही है
आज जैसा भी रहे पर
कल की चिंता हो रही है
हूँ वही.. जो भी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ ...
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