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इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
तू भी तलवार सा मैं भी तलवार सा

अपना रंगे ग़ज़ल उसके रुखसार सा
दिल चमकने लगा है रुख ए यार सा

अब है टूटा सा दिल खुद से बेज़ार सा
इस हवेली में लगता था दरबार सा

खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ्तार सा

मैं फरिश्तों के सुहबत के लायक नहीं
हम सफ़र कोई होता गुनहगार सा

गुड़िया गुड्डे को बेचा खरीदा गया
घर सजाया गया रात बाज़ार सा

बात क्या है कि मशहूर लोगों के घर
मौत का सोग होता है त्योहार सा
</poem>
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