भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विधवा / रामधारी सिंह "दिनकर"

1,720 bytes added, 05:19, 2 मार्च 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर }} {{KKCatKavita}} <poem> '''विधवा''' जीवन के इस शून्य सदन मे…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दिनकर
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''विधवा'''

जीवन के इस शून्य सदन में
जलता है यौवन-प्रदीप; हँसता तारा एकान्त गगन में।
:::::जीवन के इस शून्य सदन में।

::पल्लव रहा शुष्क तरु पर हिल,
::मरु में फूल चमकता झिलमिल,
ऊषा की मुस्कान नहीं, यह संध्या विहँस रही उपवन में।
:::::जीवन के इस शून्य सदन में।

::उजड़े घर, निर्जन खँडहर में
::कंचन-थाल लिये निज कर में
रूप-आरती सजा खड़ी किस सुन्दर के स्वागत-चिन्तन में?
:::::जीवन के इस शून्य सदन में।

::सूखी-सी सरिता के तट पर
::देवि! खड़ी सूने पनघट पर
अपने प्रिय-दर्शन अतीत की कविता बाँच रही हो मन में?
:::::जीवन के इस शून्य सदन में।

::नव यौवन की चिता बनाकर,
::आशा-कलियों को स्वाहा कर
भग्न मनोरथ की समाधि पर तपस्विनी बैठी निर्जन में।
:::::जीवन के इस शून्य सदन में।

१९३१

</poem>