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सखि, कहाँ जाऊँ रे / ठाकुरप्रसाद सिंह
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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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<poem>
सखि, कहाँ जाउँ रे
मोको कहाँ ठाउँ रे
आधा मन घरे मोरा
आधा मन बाहिरे
आधा मन लगा मोरा
कुँआरे के साँवरे
सखि, कहाँ जाउँ रे
मोको कहाँ ठाउँ रे ?
</poem>
अनिल जनविजय
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