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चाँद दिखा / विष्णु नागर

44 bytes added, 17:19, 1 अप्रैल 2011
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
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<poem>
फिर मुझे चाँद दिखा
तुम, तुम भी हो, तुम मैं भी हो, तुम वो भी हो
वो, वो भी है, वो तुम भी है, वो मैं भी हूँ।
</poem>