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नज़दीकियों की चाह / उमेश पंत
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,
04:01, 12 अप्रैल 2011
और उनसे भागना लगता है
जैसे ज़िन्दगी से भागना,
पर जब
नज़दीकियां
नज़दीकियाँ
दूर चली जाती हैं
तो दूरियों के पास नहीं होता
पास आने के सिवाय और कोई विकल्प ।
अनिल जनविजय
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