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<poem>
कली काली बिल्ली ढूँढ रही है, घर-घर आज शिकार ।
उसे नहीं इससे मतलब है कौन कहाँ लाचार ।
दीख रही इसकी आँखों में
संम्मोहन सम्मोहन की ज्वाला,
जिसकी ओर निहारा, उसको
अपने वश कर डाला,
घूम रही अपने पाँवों में
गूंगे घुँघरू बाँधे,
बड़े बड़ों क के दामन अपने
पंजों के बल साधे,