Changes

{{KKCatNavgeet}}
<poem>
कली काली बिल्ली ढूँढ रही है, घर-घर आज शिकार ।
उसे नहीं इससे मतलब है कौन कहाँ लाचार ।
दीख रही इसकी आँखों में
संम्मोहन सम्मोहन की ज्वाला,
जिसकी ओर निहारा, उसको
अपने वश कर डाला,
घूम रही अपने पाँवों में
गूंगे घुँघरू बाँधे,
बड़े बड़ों के दामन अपने
पंजों के बल साधे,
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits