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वृक्षों की लम्बी छायाएँ कुछ सिमट थमीं ।
धूप तनिक धौली हो,
औरों की ।
मेरी तो
छज्जों, दरवाज़ों,झरोखों, मुँडेरों परमँडराते,घुमड़-घुमड़ भर जाते,धुएँ बीच,घुटती, सहमती, उदास साँझऔर--और--और वह शुक्रतारा !सुबह तक जिस पर अँधियारे की परत जमी ।
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