'''( जानकी -मंगल पृष्ठ 6)'''
'''विश्वामित्रजी की राम-भिक्षा-12'''
 
( छंद 33 से 40 तक)
 
थ्गर तरू बेलि सरित सर बिपुल बिलोकहिं। 
धावहिं बाल सुभाय बिहग मृग रोकहिं।33। 
 
सकुचहिं मुनिहिं सभीत बहुरि फिरि आवहिं। 
तोरि फूल फल किसलय माल बनावहिं।34। 
 
देखि बिनोद प्रमोद प्रेम कौसिक उर। 
करत जाहिं घन छाँह सुमन बरषहिं सुर।।
 
 बधी ताड़का राम जानि  सब लायक। 
बिद्या मंत्र रहस्य दिए मुनिनायक।। 
 
मन लोगन्ह के करत  सुफल मन लोचन।
 गए कौसिक आश्रमंिहं बिप्र भय मोचन।। 
 
मारि निसाचर निकर जग्य करवायउ। 
अभय किए मुनिबृंद जगत जसु गायउ।38।
 
 बिप्र साधु सुर काजु महामुनि मन धरि। 
रामहिं चले लिवाइ धनुष मख मिसु करि।39। 
 
गौतम नारि उधारि पठै पति धामहि। 
जनक नगर लै गयउ महामुनि रामहिं।40।
 
(छंद5) 
 
 लै गयउ रामहि गाधि सुवन बिलोकि पुर हरषे हिएँ। 
सुनि राउ आगे लेन आयउ सचिव गुर भूसुर लिएँ।।
 
 नृप गहे पाय असीस पाई मान आदर अति किएँ।। 
अवलोकि रामहि अनुभवत मनु ब्रह्मसुख सौगुन किएँ।5।