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|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
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<poem>
मेरी बाहों में पिघलता हुआ सीमाब<ref>पारा</ref> कभी,
मेरी आगोश<ref>गोद</ref> में सोया हुआ सा ख़्वाब कभी,

ये मुख्तलिफ<ref>अलग-अलग</ref> तेरे अंदाज़ लुभाएँ मुझको!

कभी उड़ता हुआ बादल है तू, बरसात कभी,
कभी जवाब बने है, तो सवालात कभी…

तू हकीकत है तो क्यूँ सामने आता ही नहीं?

तू तसव्वुर<ref>ख़याल / ध्यान</ref> है अगर…
छू रहा है कैसे मुझे?
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