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बौने / अनिल विभाकर

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|संग्रह=सच कहने के लिए / अनिल विभाकर
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<Poem>
बौने चढ़ गए पहाड़
तोड़ लिया ज़मीन से रिश्ता
बौने चढ गये पहाड़ तोड़ लिया जमीन से रिश्ता  उनके पहाड़ चढने चढ़ने से हमें क्या एतराज पहाड़ पर चढे चढ़े बौने और भी बौने नजर नज़र आते हैं  इस युग में कठिन जरूर है मेरुदंड की रक्षा
इस युग में कठिन ज़रूर है मेरुदंड की रक्षा
मुश्किल में है नमक की लाज
 घोंसले में कब घुस जायेंगे संपोलेसँपोले
कठिन है कहना
 
सच तो यह भी है
बौने, बौने ही नज़र आएँगे राजसिंहासन पर भी
बौने, बौने ही नजर आएंगे राजसिंहासन पर भी  बड़े होने के लिए जरूरी ज़रूरी है खुद ख़ुद का कद क़द बढाना 
बड़े कद वाले भी बौनों की तीमारदारी में
 जब गाते हैं राग राज, पढते पढ़ते हैं कसीदे वे बौने हो जाते हैं।हैं ।</poem>
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