Changes

}}
<poem>
'''राजा और हम'''
अँधेरे में
भूख से दर्द और दुख से बिलबिलाते
जेठ की चिलचिलाती धूप में हम
धूल पसीने से गुँथे
खनते रहते हैं कुआँ
राजा लाठी में सरसों तेल पिलाता रहता है
आरिष में काँपते-थरथराते
हम लेटेते हैं खेत की मेड़ पर
और बचाते हैं पानी
राजा खून की नदी बहाता रहता है
हमारे बच्चे अक्सर
बीमार रहते हैं डगमग करते हैं
हम खोजते हैं बकरी का दूध
राजा श्वानों को खीर खिलाता रहता है
हम गीत प्रीत का गाना चाहते हैं
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,749
edits