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Kavita Kosh से
दौलत के बल पर गुर्दा मिला, जैसा चाहा वैसा
शरीर के ढेर सारे अंग मिले
किराए पर मिली कोख भी
ढेर सारी रीढ़ दिखाई सौदागरों ने
पसंद नहीं आई एक भी
सब लुंज-पुंज
कहीं नहीं मिली तनी हुई रीढ़
दुकानदार ने कहा - यहां यहाँ क्या कहीं नहीं मिलेगी
विष्णु के सात फनों वाले
शेषनाग की तरह दुर्लभ है यह।यह ।
बिना तनी हुई रीढ़ के चल रहा है यह देश
यही है देशवासियों के दुख की असली वजहवज़ह</poem>