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राजकाज का
तो फिर क्या बदला?
 
निर्वाचन की गहमागहमी
जब तब होती है,
खर्च बढे ंतो तो कर्ज शीश पर
जनता ढोती है।
दल बदले
जैसी की तैसी
तो फिर बदला क्या?
 
कर्ज कमीशन घटा न तिल भर
सुविधा शुल्क बढ़ा
कागज बदला
स्याही बदली
बदली बदल गयी भाषा
अर्थ रहा
जैसे का तैसा
तो फिर बदला क्या?
 
बंद मुठ्ठियों में जिन हाथों
थी जाडे की धूप
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