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|विविध=--यह पुस्तक खण्डेलवाल प्रेस, वाराणसी में मुद्रित हूई थी और तब इसका मूल्य था 2.50 रूपये । बाद में राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली ने इसे शमशेर जी के दूसरे संग्रह 'कुछ और कविताएँ' के साथ 1984 में फिर से
प्रकाशित किया । मूल पुस्तक में कविताओं की सूची के बाद एक नोट था, जिसे हम ज्यों का त्यों यहाँ दे रहे हैं ।
नोट : जिन कविताओं पर रचनाकाल नहीं है, वह प्राय: '५६-'५७-'५८ की हैं : लगभग सभी इससे पूर्व प्रकाशित । इनमें "चीन" सब से हाल की है : इसको प्रस्तुत रूप में आते-आते चाहे डेढ़ साल लग गया हो, मगर सुधार-संवार प्रेस में देते वक्त भी चलता रहा; और यहाँ पर श्री जगत शंखधर की सुरुचि का संयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ । (बहरहाल, कहीं यह न समझ लिया जाय कि चीनी भाषा मुझे ज़रा भी आती है! यह रौ दूसरी है। )
''मेरे इस संग्रह के लिए कविताओं का चयन श्री जगत शंखधर ने ही किया है ।
''एक कविता को सचित्र देना पड़ा । वास्तव में "घनीभूत पीड़ा" को जिन रेखाओं के संकेत और सहारे से शब्द मिले, वे--मुझे आज वर्षों बाद भी लगता है कि--उसका अभिन्न अंग हैं ।
''"वह सलोना जिस्म" लिखते समय हज़रत फ़िराक़ गोरखपुरी के कलाम का कुछ असर, स्पष्ट ही, मेरे मन पर
था ।
''संग्रह की अंतिम कविता गत नवम्बर ('५८) में अज्ञेय जी के कुछ इधर के कविता-संग्रह पढ़ते समय अनायास ही लिख गयी । -- शमशेर बहादुर सिंह
नोट : जिन कविताओं पर रचनाकाल नहीं है, वह प्राय: '५६-'५७-'५८ की हैं : लगभग सभी इससे पूर्व प्रकाशित । इनमें "चीन" सब से हाल की है : इसको प्रस्तुत रूप में आते-आते चाहे डेढ़ साल लग गया हो, मगर सुधार-संवार प्रेस में देते वक्त भी चलता रहा; और यहाँ पर श्री जगत शंखधर की सुरुचि का संयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ । (बहरहाल, कहीं यह न समझ लिया जाय कि चीनी भाषा मुझे ज़रा भी आती है! यह रौ दूसरी है। )मेरे इस संग्रह के लिए कविताओं का चयन श्री जगत शंखधर ने ही किया है ।एक कविता को सचित्र देना पड़ा । वास्तव में "घनीभूत पीड़ा" को जिन रेखाओं के संकेत और सहारे से शब्द मिले, वे--मुझे आज वर्षों बाद भी लगता है कि--उसका अभिन्न अंग हैं ।"वह सलोना जिस्म" लिखते समय हज़रत फ़िराक़ गोरखपुरी के कलाम का कुछ असर, स्पष्ट ही, मेरे मन पर था ।संग्रह की अंतिम कविता गत नवम्बर ('५८) में अज्ञेय जी के कुछ इधर के कविता-संग्रह पढ़ते समय अनायास ही लिख गयी । -- शमशेर बहादुर सिंह
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