भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatNazm}}
<poem>
क्यूँ ज़ियाकार ज़ियांकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँफ़िक्र-ए-फर्दाफ़र्दा<ref>कल की चिन्ता</ref> न करूँ, महव<ref>खोया रहना</ref>-ए-ग़म-ए-दोश रहूँनाले बुलबुल की सुनूँ और हमअतंगोश हमा-तन-गोश<ref>चुपचाप सुनना </ref> रहूँहमनवा<ref> साथी</ref> मैं भी कोई गुल हूँ के ख़ामोश रहूँ ।रहूँ।
जुरत-आमोज़ <ref>साहस सिखाने वाला</ref> मेरी ताब-ए-सुख़न <ref>बातों का तेज</ref> है मुझको
शिकवा अल्लाह से ख़ाकम बदहन है मुझको
ऐ ख़ुदा, शिकवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा भी सुन ले
ख़ूगर-ए-हम्ज़ हम्द <ref>प्रशंसा करने के आदी</ref> से थोड़ा सा ग़िला भी सुन ले ।ले।
थी तो मौजूद अज़ल <ref>आदि</ref> से ही तेरी ज़ात-ए-क़दीम<ref> पुराने प्राणी </ref>फूल था ज़ेब-ए-चमन, पर न परेशान थी शमीम<ref> सुगंध</ref> ।शर्त-ए-इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीं अमीम <ref>सार्वभौमिक, स्र्वोपरि. यहाँ पर मतलब ईश्वर या अल्लाह से है। </ref>।बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम <ref> पवन </ref>।
हमको जमहीयत-ए-ख़ातिर ये परेशानी थी
वरना उम्मत तेरी महबूब की दीवानी थी ।थी।
हमसे पहले था अजब तेरे जहाँ का मंजरमंज़र। कहीं थे मस्जूद<ref>पूज्य (जिसका सजदा किया जाय), शज़र</ref> ते थे पत्थर, कहीं माबूद<ref>पूज्य</ref> शजर<ref>पेड़</ref>। खूगरख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस <ref>महसूस कर सकने वाली आकृति को (पूजने की) आदी </ref> थी इंसा की नज़रनज़र। मानता फ़िर कोई अनदेखे खुदा को कोई क्यूंकर?
तुझको मालूम है लेता था कोई नाम तेरातेरा। कुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तेरातेरा।
बस रहे थे यहीं सल्जूक<ref>उत्तरपश्चिमी ईरान और पूर्वी तुर्की में दसवीं सदी का एक साम्राज्य, शासक तुर्क मूल के थे</ref> भी, तूरानी भी ।<ref>मध्य-एशियाई </ref> भी। अहल-ए-चीं चीन में, ईरान में सासानी<ref>अरबों की ईरान पर फ़तह के ठीक पहले के शासक, अग्निपूजक पारसी, अमुस्लिम</ref> भी ।भी। इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी ।भी। इसी दुनिया में यहूदी भी थे, नसरानी भी ।<ref>ईसाई</ref> भी।
पर तेरे नाम पर तलवार उठाई किसने ?बात जो बिगड़ी हुई थी वो बनाई किसने ?
थे हमीं एक तेरे मअर का आराओं में ।में। खुश्कियों में कभी लड़ते, कभी दरियाओं में ।में। दी अज़ानें कभी योरोप के कलीशाओं<ref>चर्च, गिरिजाघर</ref> में ।में। कभी अफ़्रीक़ा के तपते हुए सेहराओं<ref>रेगिस्तान</ref> में ।में।
शान आँखों में न जँचती थी जहाँदारों कीकी। कलेमा<ref> ये कहना कि 'अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका संदेशवाहक था', इस्लाम का सबसे ज्यादा प्रयुक्त वंदनवाक्य</ref> पढ़ते थे हम छाँव में तलवारों की ।की।
हम जो जीते थे, तो जंगों की मुसीबत के लिए
और मरते थे तेरे नाम की अज़मत <ref>महानता</ref> के लिए ।लिए।
थी न कुछ तेग़ ज़नी अपनी हुकूमत के लिए
सर बकफ़<ref> हथेली पर</ref> फिरते थे क्या दहर <ref>दुनिया</ref> में दौलत के लिए ?
कौम अपनी जो ज़रोमाल-ए-जहाँ पर मरती
बुत फरोशी के एवज़ बुत-शिकनी क्यों करती ?
टल न सकते थे अगर जंग में अड़ जाते थे।
पाँव शेरों के भी मैदां से उखड़ जाते थे।
तुझ से सरकश हुआ कोई तो बिगड़ जाते थे।
तेग़<ref>तलवार</ref> क्या चीज़ है, हम तोप से लड़ जाते थे।
काट कर रख दिये कुफ़्फ़ार<ref>काफ़िर का बहुवचन</ref> के लश्कर<ref>सेना</ref> किसने?
किसने ठंडा किया आतिशकदा<ref>अग्निगृह, इस्लाम के पूर्व ईरान के लोग आग और देवी-देवताओं की पूजा करते थे</ref>-ए-ईरां को ?किसने फिर ज़िन्दा किया दज़तराएतज़कर-ए-यज़दां को ?
कौन सी क़ौम फ़क़त<ref> सिर्फ़</ref> तेरी तलबगार हुई ?और तेरे लिए जहमतकश-ए- पैकार हुई ?किसकी शमशीर<ref>तलवार</ref> जहाँगीर, जहाँदार हुई ?किसकी तक़दीर से दुनिया तेरी बेदार हुई ?
किसकी हैमत हैबत <ref>डर</ref> से सनम<ref>मूर्तियाँ </ref> सहमे हुए रहते थे ?मुँह के बल गिरके 'हु अल्लाह-ओ-अहद' कहते थे ।थे।
आ गया ऐन लड़ाई में अगर वक़्त-ए-नमाज़
बन्दा ओ साहिब ओ मोहताज़ ओ ग़नी <ref> धनाढ्य, संपन्न </ref>एक हुए
तेरी सरकार में पहुँचे तो सभी एक हुए ।हुए।
महफिल-ए-कौन-ओ मकामे सहर-ओ-शाम फ़िरे
कोह-में दश्त <ref> रेत, रेगिस्तान </ref> में लेकर तेरा पैग़ाम फिरे
और मालूम है तुझको कभी नाकाम फिरे ?
दश्त-तो-दश्त हैं, दरिया भी न छोड़े हमनेहमने। दहर-ए-ज़ुल्मात में दौड़ा दिये घोड़े हमने ।हमने।
फिर भी हमसे ये ग़िला है कि वफ़ादार नहीं ?हम वफ़ादार नहीं, तू भी तो दिलदार नहीं ।नहीं।
उम्मतें और भी हैं, उनमें गुनहगार भी हैंहैं। हिज़ इजज़<ref>कमज़ोरी</ref> वाले भी हैं, मस्त-ए-मय-ए-पिन्दार <ref>अभिमानी, शब्दार्थ - घमंड के नशे में मस्त</ref> भी हैं ।हैं। इनमें काहिल भी है, ग़ाफ़िल <ref>नादान </ref> भी हैं, हुशियार भी हैसैकड़ों हैं कि तेरे नाम से बेदार भी है ।है।
रहमतें हैं तेरी अगियार अग़ियार<ref>दुश्मन</ref> के काशानों परपर। बर्क गिरती है तो बेचारे मुसलमानों पर ।पर।
बुत सनमख़ानों में कहते हैं मुसलमान गएगए। है खुशी उनको कि काबे के निगहबान गए ।गए। मंजिले-ए-दहर से ऊँटों के गुनीख़्वान गएहदीख़्वान गए। अपनी बगलों में दबाए हुए क़ुरान गए ।गए।
ज़िंदाज़न कुफ़्र है, एहसास तुझे है कि नहीं?अपनी तौहीद का कुछ फाज पास<ref>बचाने की चिंता </ref> तुझे है कि नहीं?
ये शियाकत नहीं, हैं उनके ख़ज़ाने मामूरमामूर। नहीं महफिल में जिन्हें बात भी करने का शअउरशअउर। कहर तो ये है कि काफिर को मिले रुद-ओ-खुसूरखुसूर। और बेचारों मुसलमानों को फ़कत वाबावादा-ए-हुज़ूर हूर।
अब वो अल्ताफ़ <ref>दया</ref> नहीं, हमपे हम पे इनायात महीं<ref> मेहरबानी </ref> नहींबात ये क्या है कि पहली सी मुदारात नहीं ?
क्यों मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब?तेरी कुदरत तो है वो, जिसकी न हद है न हिसाबहिसाब। तू जो चाहे तो उठे सीना-सहरा से हुबाब<ref>बुलबुला </ref>। रहरवारहरव-ए-दश्त शाली जदा-ए सैली ज़ दहा मौज-ए सराबसराब।
बाम-ए-अगियार है, रुसवाई है, नादारी हैहै। क्या तेरे नाम पे मरने के का एवज़ भारी ख़्वारी है ?
बनी अगियार की अब चाहने वाली दुनियादुनिया। रह गई अपने लिए एक ख़याली दुनिया ।दुनिया। हम तो रुक़सत रुख़सत हुए, औरों ने संभाली दुनियादुनिया। फ़िर न कहना कि हुई तौहीद से खाली दुनिया ।दुनिया।
हम तो जीते हैं कि दुनिया में तेरा नाम रहेरहे। कहीं मुमकिन है कि साक़ी न रहे, जाम रहे ?
तेरी महफिल भी गई चाहनेवाले भी गएगए। शब की आहें भी गईं, जुगनूं के नाले भी गएगए। दिल तुझे दे भी गए ,अपना सिला ले भी गएगए। आके आ के बैठे भी न थे और निकाले भी गएगए।
आए उश्शाकउश्शाक़ <ref>आशिक़ का बहुवचन</ref>, गए वादा-ए-फरदा लेकरफ़रदा लेकर। अब उन्हें ढूँढ चराग-ए-रुख़-ज़ेबा लेकरलेकर।
दर्द-ए-लैला भी वहींवही, क़ैस <ref>लैला-मजनूं की कहानी में मजनूं का वास्तविक नाम क़ैस था। मजनूं का नाम उसे पाग़ल बनने के बाद मिला। अरबी भाषा में मजनून का शाब्दिक अर्थ पागल होता है। </ref> का पहलू भी वहीवही। नज्द <ref>मध्य अरब का रेगिस्तान </ref>के दश्त-ओ-जबल में रम-ए-आहू <ref>हिरण की चौकड़ी </ref> भी वहीवही। इश्क़ का दिल भी वही, हुस्न का जादू भी वहीवही। उम्मत-ए-अहदअहमद-मुरसल भी वही, तू भी वहीवही।
तुझकों छोड़ा कि रसूल-ए-अरबी <ref>अरब का पैग़म्बर, यानि मुहम्मद </ref> को छोड़ा?बुतगरी पेशा किया, बुतशिकनी <ref>मूर्तियों को तोड़ना</ref> को छोड़ा ?इश्क को, इश्क़ की आशुक्तासरी आशुफ़्तासरी <ref>रोमांच, पुलक</ref> को छोड़ा?रस्म-ए-सलमानोसलमान-कुवैशओ-उवैश-ए-करनी क़रनी<ref>क़रनी, सीरिया के उवैश जो इस्लाम के शुरुआती परिवर्तितों में थे। हज़रत अली के समर्थन में उन्होंने कर्बला की लड़ाई लड़ी और जिसमें वो शहीद हुए थे। </ref> को छोड़ा?
आग तपती सी तकबीर <ref>ये स्वीकारना कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका दूत था </ref> की सीनों में दबी रखते हैंज़िंदगी मिस्ल-ए-बिलाल-ए-हवसी हबसी रखते हैं ।हैं।
इश्क़ की ख़ैर, वो पहली सी अदा भी न सही
ज्यादा पैमाई-ए-तस्लीम-ओ-रिज़ा भी न सही ।सही। मुज़्तरिब <ref>बेचैन</ref> दिल सिफ़त-ए-ख़िबलानुमा क़िबलानुमा भी न सहीऔर पाबंदी -ए आईना -आईन<ref>विधान, नियम</ref>-ए -वफ़ा भी न सही ।सही।
कभी हमसे कभी ग़ैरों से शनासाई है<ref>अपना, जुड़ा</ref> है। बात कहने की नहीं, तू भी तो हरजाई है ।है।
सर-ए-फ़ाराँ से पे किया दीन को कामिल तूनेतूने। इक इशारे में हज़ारों के लिए दिल तूने ।तूने। आतिश अंदोश किया इश्क़ का हासिल तूनेतूने। फ़ूँक दी गर्मी-ए-रुख्सार से महफिल तूने ।महफ़िल तूने।
आज क्यूँ सीने हमारे शराराबाज़ नहीं?हम वही शोख़ सा दामांसोख़्ता सामां हैं, तुझे याद नहीं ?
वादी ए नज़्द नज्द में वो शोर-ए-सलासिल <ref>जंज़ीर </ref> न रहारहा। कैस क़ैस दीवाना-ए-नज्जारानज़्ज़ारा-ए-महमिल न रहारहा। होसले हौसले वो न रहे, हम न रहे, दिल न रहारहा। घर ये उजड़ा है कि तू रौनक-ए-महफ़िल न रहा ।रहा।
ऐ ख़ुसारू कि ख़ुश आं रूज़ के आइ-ओ-बशद नाजाईव बसद नाज़ आई। दे हिजाबां न बे हिजाबाने सू-ए-महफ़िल-ए-माबाईमा बाज़ आई।
अपने परवानों को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी दे<ref>खुद को जलाने का मज़ा</ref> दे। बर्के तेरी ना वो दैरीना<ref>पुरानी बिज़ली</ref> को फ़रमान-ए-जिगर चोरी दे देसोज़ी दे।
क़ौम-ए-आवारा इनाताब इनां ताब है फिर सू-ए-हिजाजहिजाज़। ले उड़ा बुलबुल-ए-बेपर को मदाके परवाजपरवाज। मुज़्तरिब गाग़ बाग़ के हर गुंचे में हैबू-ए-नियाज़। तू ज़रा छेड़ तो दे तश्ना मिज़राब-ए-मिज़राज़ साजसाज।
नगमें बेताब है हैं तारों से निकलने के लिएलिए। दूर तूर मुज्तर हैं उसी आग में जलने के लिए ।लिए।
मुश्किलें उम्मते मरदूम उम्मत-ए-मरहूम<ref>हारे हुए लोगों की उम्मत, यहाँ पर अर्थ - इस्लाम</ref> की आसां कर दे ।दे। नूरमूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे ।दे। इनके जिन्स-ए-नायाब-ए-मुहब्बत <ref>ऐसे दुर्लभ प्रेमियों (यहाँ पर अर्थ मुस्लमानों से है)</ref> को फ़िर अरज़ां <ref>सुलभ, सस्ता</ref> कर देहिन्द के नए दैर नशीनों <ref>पुराने देवियो की ख़िदमत करने वाले</ref> को मुसल्मान मुसल्मां कर दे ।दे।
जू-ए-ख़ून मीचकद अज़ हसरते दैरीना मा।
मीतपद नाला ब-निश्तर कदा-ए-सीना मा। <ref> फ़ारसी में लिखी पंक्ति का अर्थ है - ख़ून की धार हमारी पुरानी हसरतों से निकलती है, और सीने के हत्यागार से हमारे चीखने की आवाज़ आती है। (अपूर्ण अनुवाद है। ) </ref>
चाक इस बुलबुल ए तन्हा की नवां से दिल हों
जागने वाले इसी बांग-ए-दरा से दिल हों ।हों।
यानि फ़िर ज़िन्दा ना अहद-ए-वफ़ा से दिल हों
फिर उसी बादा ए तेरी ना के प्यासे दिल हों । अजमी ख़ुम है तो क्या, मय तो हिजाज़ी है मेरी ।नग़मा हिन्दी है तो क्या, लय तो हिजाज़ी है मेरी ।हों।
अजमी ख़ुम है तो क्या, मय तो हिजाज़ी<ref> अरब का प्रांत जिसमें मक्का और मदीना हैं </ref> है मेरी।
नग़मा हिन्दी है तो क्या, लय तो हिजाज़ी है मेरी।
</poem>
(कविता में बहुत सी अशुद्धियाँ है । इन्हें है। शब्दार्थों के साथ शीघ्र ही सुधारा जाएगा । तथा शोधन में सहयोग का स्वागत है।)
{{KKMeaning}}