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'''समय की सुरंग में लुप्त होते यथार्थ को तलाशती लेखिका ]]राजी सेठ[[राजी सेठ]]!'''
आलेखः-]] [[अशोक कुमार शुक्ला[[]]
‘‘ ----फिलहाल तो इतना कि -------इनमें एक निरन्तरता है इस बात को स्पष्ट कर देना इसलिये जरूरी है कि जब लिखना शुरू किया था ( लिखना मैने देर से शुरू किया , जीवन के उत्तरार्र्द्ध में ) तो मन पर चयन धर्मिता का खासा दबाव पडता था लगता था रचनाकार को सदा अपना श्रेष्ठतम् ही प्रस्तुत करना चाहिये। इस मानसिकता के चलते अपने पहले कहानी संग्रह ‘अंधे मोड से आगे’ की भूमिका में यह भी लिख दिया था कि धरती पर जो कदम वजनदार पडते हैं वही अपना निशान छोडते हैं।
ज्यों ज्यों समय बीतता गया उस सोच और संकल्प में दरार आती गयी। लगा जीवन में अच्छा-बुरा, ऊंच-नीच, सफल -असफल दोनों हैं। यदि सदा ही वजनदार कदमों की बात होती रही तो अपनी यात्रा अपने आपको भी कभी नहीं दीखेगी। अनुभव के प्रत्यक्षीकरण का कोई वस्तुपरक पैमाना बन ही नहीं पाएगा जो अपने आप में एक बहुत बडी सीख है। -----’’
‘‘मृत्यु औचक आती है और कुुछ न भी करे तो संवेदनशून्य और परिपक्व (?) तो करती ही करती है। यह अजीब बात है कि मृत्यु से निबटने की समझ मृत्यु के घटित में से ही आती है। रचना की शब्दावली में यह अनुभव की कीमत है। ’’
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 2004 में प्रकाशित एक संग्रह की भूमिका में लेखिका ने इस केन्द्रीय विषय के सम्बन्ध में अपना स्पष्टीकरण कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया हैः-
इनकी रचनाओं के अनुवाद पंजाबी, अंग्रेजी,उर्दू, कन्नड़, गुजराती, मराठी, और उड़िया आदि भाषाओं में प्रमुख रूप से हुये हैं।
इन्हें अनन्त गोपाल शेवड़े पुरस्कार, ]][[हिन्दी अकादमी पुरस्कार]], [[ तथा भारतीय भाषा परिषद् पुरस्कार सहित अनेक सम्मान भी प्राप्त हुये हैं।