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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तरतीब में
या तो मकान रह सकते हैं
या फिर दरख़्त !
आदमी नहीं ! आदमी नहीं !!
संस्कार और व्यवस्था की
बे-आवाज टूटन
अँन्धेरे में खोये शहर की तरह
अपने होने का संकेत भर देती है !
नाली से घुसकर
साँप का मकान के किसी कोने
चुपचाप बैठ जाना
या
रेंग कर कोटर में दुबकना
कोई मानी नहीं रखता !
केवल
रात को झगड़ कर सोये पति-पत्नी
सुबह विष-सूचना बन जाते हैं !
नीड़ में शिशु पाँखियों के खुले चंचु नहीं दिखते !
घर की हर चीज
करीने से अपनी-अपनी जगह होती है !
शाख़ों के तनाव में कोई कमी नहीं आती !
ना ही हवा के संगीत पर
नाचती पत्तियों पर कोई असर पड़ता है !
क्योंकि : मकान और दरख़्त तरतीब में हैं !
साक्षी : मृत माता की छाती से मुँह लगाए बच्चा
घोसले पर मँडराती दुखी-उदास एक चिड़िया !
(१९६५)
</poem>
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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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तरतीब में
या तो मकान रह सकते हैं
या फिर दरख़्त !
आदमी नहीं ! आदमी नहीं !!
संस्कार और व्यवस्था की
बे-आवाज टूटन
अँन्धेरे में खोये शहर की तरह
अपने होने का संकेत भर देती है !
नाली से घुसकर
साँप का मकान के किसी कोने
चुपचाप बैठ जाना
या
रेंग कर कोटर में दुबकना
कोई मानी नहीं रखता !
केवल
रात को झगड़ कर सोये पति-पत्नी
सुबह विष-सूचना बन जाते हैं !
नीड़ में शिशु पाँखियों के खुले चंचु नहीं दिखते !
घर की हर चीज
करीने से अपनी-अपनी जगह होती है !
शाख़ों के तनाव में कोई कमी नहीं आती !
ना ही हवा के संगीत पर
नाचती पत्तियों पर कोई असर पड़ता है !
क्योंकि : मकान और दरख़्त तरतीब में हैं !
साक्षी : मृत माता की छाती से मुँह लगाए बच्चा
घोसले पर मँडराती दुखी-उदास एक चिड़िया !
(१९६५)
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