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'''किरीट सवैया'''
''(व्याज से वसंत-श्री का वर्णन)''
 
नागर से हैं खरे तरु कोऊ, लिएँ कर-पल्लव मैं फल-फूलन ।
पाँवड़े साजि रहे हैं कोऊ, कोऊ बीथिन बीच पराग-दुकूलन ॥
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