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|पीछे=मिलि माधवी आदिक फूल के ब्याज / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
}}
<poem>
'''मनहरन घनाक्षरी'''
''(ऋतुराज के आगमन से सहचरों को अतिशय आनंद की प्राप्ति का वर्णन)''
पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन, चमेलिन हूँ सरस बितान-छबि छाई है ।
फैल्यौ चहूँ गहब-गुलाबन कौ गंध धूरि, धूँधरित सुरभि-समीर सुखदाई है ॥
चारयौं ओर कोकिल-चकोर-मोर-सोरन सौं, और छिति छोरन अनंद अधिकाई है ।
आज ’ऋतुराज’ के समागम के काज होत, धाम-धाम बेलिन कैं आनँद-बधाई है ॥२९॥
</poem>
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'''मनहरन घनाक्षरी'''
''(ऋतुराज के आगमन से सहचरों को अतिशय आनंद की प्राप्ति का वर्णन)''
पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन, चमेलिन हूँ सरस बितान-छबि छाई है ।
फैल्यौ चहूँ गहब-गुलाबन कौ गंध धूरि, धूँधरित सुरभि-समीर सुखदाई है ॥
चारयौं ओर कोकिल-चकोर-मोर-सोरन सौं, और छिति छोरन अनंद अधिकाई है ।
आज ’ऋतुराज’ के समागम के काज होत, धाम-धाम बेलिन कैं आनँद-बधाई है ॥२९॥
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