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कुछ और चाँद के ढलते सँवर गयी है रात / गुलाब खंडेलवाल
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20:29, 9 जुलाई 2011
हथेलियों पे हमारी है चाँद पूनम का
किसी की
किसीकी
शोख़ लटों में उतर गयी है रात
मिला न कोई महक दिल की तौलनेवाला
गुलाब! आपकी यों ही गुज़र गयी है रात
<poem>
Vibhajhalani
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