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इन पहाड़ों पर....-1 / घनश्याम कुमार 'देवांश'
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06:38, 11 जुलाई 2011
उसके होंठ फूटते हैं
किसी भारी पत्थर की धार से टकराकर
एक
ठन्डे
ठंडे
काले रक्त की धार लील लेती है सब कुछऔर चारों
तरफ
तरफ़
एक सन्नाटा
ख़ामोश लाल परदे की तरह छाने लगता है
जो मेरी आत्मा के घायल
अनिल जनविजय
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